संविधान की प्रस्तावना से “समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष” शब्द हटाया जाये – सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका

संविधान की प्रस्तावना से”समाजवाद व धर्मनिरपेक्ष” शब्द हटाया जाये’
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है किसी देश के लोग धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकते केवल सरकार ‘सेक्युलर’ हो सकती है
********************************
नई दिल्ली | जब से केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार आई हैं सवर्ण समाज के लोग संविधान में वर्णीत मूल्यों को चुनोती दे रहें हैं जिसमे अधिकतर याचिका ख़ारिज भी हो रहीं हैं लेकिन हिन्दू राष्ट्र व् विवादित मनुवाद को मानने वाले लोग देश में कटर पंथी सोच को बढ़ावा देने में लगे हैं और वह भारत देश के संविधान में बदलाव करने की कोशिश विभिन्न तरिकों से करते रहते हैं जिसका ताजा उदाहरण देखने को मिल रहा हैं |
सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई है जिसमें संविधान की प्रस्तावना में बाद में जोड़े गए दो शब्द समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष को हटाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट घोषित करे कि प्रस्तावना में दिये गये समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा लोकतंत्र की प्रकृति बताते हैं और ये सरकार की संप्रभुता शक्तियों और कामकाज तक सीमित हैं, ये आम नागरिकों, राजनैतिक दलों और सामाजिक संगठनों पर लागू नहीं होता। इसके साथ ही याचिका में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29ए (5) में दिये गये शब्द समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष को भी रद्द करने की मांग की गई है।

याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 14,15 और 27 सरकार के धर्मनिरपेक्ष होने की बात करता है यानि सरकार किसी के साथ धर्म,भाषा,जाति,स्थान या वर्ण के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी लेकिन अनुच्छेद 25 नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है जिसमें व्यक्ति को अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानने और उसका प्रचार करने की आजादी है कहा गया है कि लोग धर्मनिरपेक्ष नहीं होते, सरकार धर्मनिरपेक्ष होती है।
याचिका में जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 में 15 जून 1989 को संशोधन कर जोड़ी गई धारा 29ए (5) से भी सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द हटाने की मांग है। यह याचिका तीन लोगों ने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये दाखिल की है। याचिकाकर्ता बलराम सिंह और करुणेश कुमार शुक्ला पेशे से वकील हैं।
याचिका में प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्दों को हटाने की मांग करते हुए कहा गया है कि ये दोनों शब्द मूल संविधान में नहीं थे। इन्हें 42वें संविधान संशोधन के जरिये 3 जनवरी 1977 को जोड़ा गया। जब ये शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए उस समय देश में आपातकाल लागू था। इस पर सदन में बहस नहीं हुई थी, ये बिना बहस के पास हो गया था। कहा गया है कि संविधान सभा के सदस्य केटी शाह ने तीन बार धर्मनिरपेक्ष (सेकुलर) शब्द को संविधान में जोड़ने का प्रस्ताव दिया था लेकिन तीनों बार संविधान सभा ने प्रस्ताव खारिज कर दिया था।