कौन होगा अगला प्रधानमंत्री – जानें ख़ास – सियासी गणित

कौन होगा अगला प्रधानमंत्री – सियासी गणित
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लोकसभा चुनाव के दिन नजदीक आ चुके हैं और राजनीतिक दलों में केन्द्र की सत्ता हासिल करने तथा अगला प्रधानमंत्री बनाने के लिए बङे पैमाने पर जद्दोजहद शुरू हो चुकी है। गठबन्धन और महागठबन्धन बनाने का प्रयास भी तेज हो चुका है। सवाल यह है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा और वो किस दल से होगा ?
जयपुर। दो महीने बाद लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। यह चुनाव विश्व के सबसे बङे लोकतांत्रिक देश भारत की केन्द्रीय सत्ता के लिए होंगे। यह चुनाव तय करेंगे कि देश गांधी, मौलाना आज़ाद, नेहरू, डाॅक्टर अम्बेडकर औ

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र लोहिया की समानता व भाईचारे की नीतियों पर चलेगा, या नफरत की खाई में धकेला जाएगा ! यह चुनाव यह भी तय कर देंगे कि देश की सत्ता जनहित और सिद्धांत आधारित मूल्यों पर स्थापित नहीं होगी, तो गांधीवाद, समाजवाद, अम्बेडकरवाद और मार्क्सवाद के अध्याय भविष्य में किताबों से फाङ कर फेंक दिए जाएंगे ! अब सवाल यह है कि चुनाव परिणाम किसके हक में होंगे और प्रधानमंत्री कौन बनेगा ? मौजूदा सियासी माहौल को देखकर लगता है कि चुनाव परिणाम किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत तक नहीं पहुंचाएंगे तथा अगली सरकार गठबंधन की होगी।
यह भी खुली किताब की तरह है कि देशभर में दो ही पार्टियों का सबसे ज्यादा वजूद है, एक भाजपा और दूसरी कांग्रेस। लेकिन यह भी तय सा लग रहा है कि दोनों ही बङी पार्टियों की सांसद संख्या 200 के आंकड़े को नहीं छू पाएगी। जहाँ तक भाजपा का सवाल है, तो उसके पास वर्तमान में हिन्दी पट्टी की अधिकतर सीटें हैं और इन सीटों में से काफी सीटें घटेंगी तथा गैर हिन्दी पट्टी में भाजपा का बङा जनाधार बढ़ने की कोई सम्भावना नहीं है। साथ ही अधिकतर सियासी पण्डित भी भाजपा को अधिकतम 200 सीटें दे रहे हैं। बात पीएम नरेन्द्र मोदी की, तो प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर वे दोबारा तभी बैठ पाएंगे, जब भाजपा 250 के आस पास पहुंचे। क्योंकि ऐसी स्थिति में जनता दल यूनाइटेड, बीजू जनता दल, अन्ना द्रमुक, तेलंगाना राष्ट्र समिति, लोजपा जैसी पार्टियां मोदी को फिर से पीएम बनवा सकती हैं। लेकिन इसकी सम्भावना न के बराबर है, क्योंकि कोई भी सियासी पण्डित भाजपा की सांसद संख्या 200 से ऊपर आती हुई नहीं बता रहा है। ऐसी स्थिति में यह तय लग रहा है कि मोदी को सत्ता की दूसरी पारी खेलने का अवसर कतई नहीं मिलेगा।
अगर भाजपा की सीटें 200 के आस पास आ गईं, तो फिर सरकार भाजपा के ही नेतृत्व में बनेगी और प्रधानमन्त्री की कुर्सी नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह या शिवराज सिंह चौहान को मिल सकती है तथा इनमें से कोई दूसरा अटल बिहारी वाजपेयी बन सकता है, जिसे कई क्षेत्रीय क्षत्रप समर्थन दे देंगे। यह स्थिति तब पैदा होगी, जब विपक्षी वोटों में बिखराव ज्यादा होगा। अगर विपक्षी वोटों में बिखराव कम हुआ तथा चुनावों को भाजपा के फेवर में करने वाला कोई तात्कालिक मुद्दा नहीं हुआ, तो यह तय है कि भाजपा 150 सीटों के आंकड़े को भी नहीं छू पाएगी। ऐसी स्थिति में सरकार भाजपा विरोधी खेमे की बनेगी। इस खेमे में पीएम पद की दौड़ में ममता बनर्जी, मायावती, शरद पवार आदि नेताओं का नाम लिया जा रहा है। अगर चुनाव बाद सम्भावित गठबंधन और समर्थन के लिए कामरेडों की आवश्यकता पङी, तो यह तय है कि कामरेड किसी भी परिस्थिति में ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे।
जहाँ तक मायावती की बात है, तो उन्होंने यूपी में अखिलेश यादव की सपा और अजीत सिंह की आरएलडी से गठबंधन कर लिया है तथा सीटों का बंटवारा भी कर लिया है। इस गठबंधन में कांग्रेस को कोई भाव नहीं दिया गया है, जिससे कांग्रेस ने सभी सीटों पर अकेले चुनाव लङने की घोषणा कर दी है। सियासी गलियारों में चर्चा यह है कि अगर यूपी की अधिकतर सीटों पर सपा बसपा गठबंधन जीत जाता है, तो अखिलेश यादव पीएम की कुर्सी पर मायावती को बैठाने का प्रयास करेंगे, ताकि यूपी में उनका रास्ता साफ हो जाए। चर्चा यह भी है कि इस मुद्दे पर मायावती व अखिलेश यादव में सहमति बन चुकी है। मायावती को महिला और पहली दलित प्रधानमन्त्री बनवाने के नाम पर सम्भावना है कि कांग्रेस सहित अधिकतर दल सहमत हो जाएंगे।
इस कङी में एक नाम और भी है, वो है पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा का। वो अपना हर पत्ता संभल कर चल रहे हैं तथा उन्होंने राहुल गांधी, मायावती और ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनवाने की बात विभिन्न मंचों से कही है। साथ ही कामरेडों से भी उनके अच्छे सम्बन्ध हैं। उन्हें 1996 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री से दिल्ली के तख्त पर बैठाने में तत्कालीन सीपीएम महासचिव कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत का महत्वपूर्ण योगदान था। अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार गिरने के बाद कांग्रेस, कम्युनिस्ट आदि पार्टियों के समर्थन से जनता दल के नेता देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया था। वे उम्र के आखरी पङाव में 23 साल बाद तेजी से सक्रिय हो चुके हैं और उनका शायद ही कोई पार्टी विरोध करे, इसलिए सियासी गलियारों में उनको भी प्रधानमन्त्री का मजबूत दावेदार माना जा रहा है। प्रधानमंत्री पद के लिए शरद पवार को भी दावेदार माना जा रहा है। उनके सभी दलों के साथ अच्छे सम्बन्ध हैं। लेकिन चर्चा है कि कांग्रेस आलाकमान पवार को 7 लोक कल्याण मार्ग (प्रधानमन्त्री निवास) तक पहुंचाने में सहयोग नहीं करेगा, क्योंकि पवार कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता हुआ करते थे और उन्होंने सोनिया गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के विरोध में कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी।
अब बात करें राहुल गांधी की, तो राहुल गांधी के प्रधानमन्त्री बनने की सम्भावना तभी बनेगी, जब कांग्रेस की सीटें 200 के करीब आएं तथा भाजपा की 150 से कम आएं। सियासी पण्डितों का यह तो मानना है कि भाजपा की सीटें तो 150 से कम हो सकती हैं। परन्तु यह कोई भी सियासी पण्डित नहीं मान रहा है कि कांग्रेस का आंकड़ा 200 के पास पहुंच जाएगा। आज स्थिति यह है कि 543 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस करीब 135 पर नम्बर एक और दो पर है। शेष करीब 410 सीटों पर कांग्रेस तीसरे, चौथे और पांचवें नम्बर पर है। अगर पहले और दूसरे नम्बर की सभी सीटें कांग्रेस जीत जाती है, तो भी कांग्रेस का आंकड़ा 150 से कम ही रहेगा। मौजूदा सियासी माहौल और विपक्षी वोटों के बिखराव की सम्भावना को देखकर सियासी जानकारों का मानना है कि कांग्रेस तीन अंकों के आंकड़े तक पहुंच जाए, तो गनीमत है। यानी 100 सीट मिल जाएं, तो यह कांग्रेस के लिए सबसे बेहतर प्रदर्शन होगा। ऐसी स्थिति में राहुल गांधी का प्रधानमन्त्री बनना असम्भव हो जाएगा, क्योंकि उनके नेतृत्व में अन्य वरिष्ठ नेता सरकार चलाने के लिए तैयार नहीं होंगे।
इस सन्दर्भ में चर्चा यह भी है कि कांग्रेस अपना नया मनमोहन सिंह तलाश करेगी तथा नए मनमोहन सिंह के तौर पर लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खङगे का नाम लिया जा रहा है। जो कर्नाटक से हैं तथा दलित समुदाय से सम्बंधित हैं। खङगे की गिनती एक सुलझे हुए और शरीफ नेताओं में होती है, जो राहुल गांधी के विश्वसनीय भी हैं। अगर कांग्रेस खङगे का नाम पीएम के तौर पर आगे करेगी, तो शायद ही कोई पार्टी विरोध करे। एक सम्भावना और भी है, जिस पर सियासी गलियारों की उच्च चौपालों पर चर्चा हो रही है, वो है गांधी जी के पोते राज मोहन गांधी के नाम की। चर्चा है कि जब प्रधानमंत्री के नाम पर सहमति नहीं बनेगी, तो कुछ राजनेता राज मोहन गांधी के नाम को आगे करेंगे तथा अधिकतर विपक्षी दल इस नाम पर सहमत हो जाएंगे। लेकिन चर्चा है कि कांग्रेस राज मोहन गांधी के नाम पर सहमत नहीं होगी, क्योंकि वो गांधी जी के खानदान से सम्बंधित किसी चिङिया को भी सत्ता की उच्च सीढ़ी पर नहीं बैठने देगी।
लेख़क – एम फारूक़ ख़ान सम्पादक इकरा पत्रिका।